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खुले बाजार में गेहूं की धूम! 3308 रुपये तक पहुंची कीमत, MSP पर किसानों के छूटे पसीने

पंजाब में नीलामी के लिए रखे गए 24,000 टन गेहूं में से 91% बिक गया। मतलब, गेहूं का उठान (lifting) ऐसा हुआ जैसे कोई 'बेस्टसेलर प्रोडक्ट' हो। उत्तर प्रदेश और बिहार ने भी जबरदस्त प्रदर्शन किया। यूपी में 19,000 टन में से 92% गेहूं बिका, जबकि बिहार में 10,000 टन में से 94% गेहूं की बिक्री हुई।

 
wheat prices

केंद्र सरकार ने गेहूं की बिक्री में गजब का तड़का लगाया है। भारतीय खाद्य निगम (fci) के तहत ओपन मार्केट सेल स्कीम (OMSS) के ज़रिए गेहूं की नीलामी ने किसानों और आटा मिल मालिकों के बीच हलचल मचा दी है। सरकार का मकसद तो बाजार में गेहूं की उपलब्धता बढ़ाना और कीमतों को काबू में रखना था, लेकिन ये कदम MSP पर गेहूं बेचने वालों के लिए सिरदर्द बन सकता है।

क्या है नीलामी का पूरा खेल?

15 जनवरी को हुई एक बड़ी नीलामी में 13 राज्यों के 875 खरीदारों ने भाग लिया। औसतन 2,696 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर 1.41 लाख टन से ज्यादा गेहूं बिक गया। मतलब, खरीदारी ऐसी चली जैसे सालों बाद कोई सेल (sale) लगी हो। जहां छत्तीसगढ़ में बोली 2,570 रुपये प्रति क्विंटल रही, वहीं असम में बोली 3,308 रुपये तक पहुंच गई।

अब सोचिए किसान तो यही सोच रहा होगा कि "ऐसा भी क्या सोना उगाया हमने?" वहीं, मध्य प्रदेश और पंजाब के खरीदारों ने सिर्फ 2,300 रुपये प्रति क्विंटल की बोली लगाई। भई इस तरह का अंतर देखकर लगता है कि गेहूं की कीमतें भी राज्यों के मौसम और मूड पर निर्भर करती हैं।

पंजाब-उत्तर प्रदेश में गेहूं का जबरदस्त उठान

पंजाब में नीलामी के लिए रखे गए 24,000 टन गेहूं में से 91% बिक गया। मतलब गेहूं का उठान (lifting) ऐसा हुआ जैसे कोई 'बेस्टसेलर प्रोडक्ट' हो। उत्तर प्रदेश और बिहार ने भी जबरदस्त प्रदर्शन किया। यूपी में 19,000 टन में से 92% गेहूं बिका, जबकि बिहार में 10,000 टन में से 94% गेहूं की बिक्री हुई। बिहार ने तो हद ही कर दी। नीलामी की मात्रा बढ़ाकर 7,000 टन से 10,000 टन कर दी गई और सारा गेहूं छूमंतर हो गया। लगता है बिहार के खरीदारों ने ठान लिया है कि "हर गेंहू का दाना हमारे गोदाम में होगा।"

कर्नाटक में तकनीकी गड़बड़ी बनी खलनायक

जहां एक ओर अन्य राज्यों में गेहूं की नीलामी धड़ल्ले से हुई, वहीं कर्नाटक में तकनीकी गड़बड़ी ने माहौल खराब कर दिया। मिलर्स और प्रोसेसर्स समय पर बयाना नहीं दे पाए, जिसके कारण नीलामी में व्यवधान आ गया। कर्नाटक के खरीदार शायद यही सोच रहे होंगे, "टेक्नोलॉजी ने खेल बिगाड़ दिया।"

MSP पर क्यों छूटे किसानों के पसीने?

अब आते हैं किसानों के असली दर्द पर। रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की पूर्व सचिव वीना शर्मा ने सरकार के फैसले का स्वागत किया, लेकिन MSP पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा, "भले ही गेहूं की उपलब्धता बढ़ी है लेकिन मौजूदा कीमतें पहले से ही आसमान छू रही हैं। नई फसल आने में अभी वक्त है।" सरकार ने अगर ज्यादा मात्रा में गेहूं नीलामी के लिए नहीं रखा तो कीमतें और बढ़ सकती हैं। इसका सीधा असर MSP पर गेहूं बेचने वालों पर पड़ेगा। किसान भाई शायद अब यही कह रहे होंगे, "हमारा गेहूं तो बिकेगा लेकिन दाम MSP के नीचे ना गिर जाएं।"

बाजार में गेहूं की बढ़ती कीमतों का खेल

असम में 3,308 रुपये प्रति क्विंटल की बोली देखकर यही लगता है कि "भाई, गेहूं अब गरीबों का खाना नहीं रहा।" छत्तीसगढ़, पंजाब, और अन्य राज्यों में 2,300 से 2,570 रुपये प्रति क्विंटल की दरें देखकर किसानों को थोड़ा सुकून जरूर मिला होगा। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि अगर कीमतें इसी तरह ऊपर-नीचे होती रहीं, तो गरीब आदमी की रोटी भी महंगी हो जाएगी। और वैसे भी, “हर बार रोटी की कीमत बढ़ने पर पिज्जा और बर्गर वालों का बाजार चमकता है।”

सरकार का लक्ष्य और किसानों की उम्मीदें

सरकार का मुख्य उद्देश्य बाजार में गेहूं की उपलब्धता सुनिश्चित करना और कीमतों को काबू में रखना है। लेकिन किसानों की उम्मीदें MSP पर टिकी हुई हैं। अगर नीलामी का खेल इसी तरह चलता रहा तो किसानों को अपनी फसल MSP पर बेचने में दिक्कतें आ सकती हैं। हालांकि, सरकार के प्रयास से यह तो तय है कि बाजार में गेहूं की किल्लत नहीं होगी। पर किसानों को ये डर सता रहा है कि कहीं नीलामी की वजह से उनका मुनाफा कम ना हो जाए।