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Father's property Legal Rights: क्या पिता बेटे की सहमति के बिना भी संपत्ति को बेच सकता है? हाईकोर्ट ने सुन दिया ये बड़ा फैसला

 
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Times Haryana, नई दिल्ली: भारतीय समाज हमेशा पारिवारिक संपत्तियों के समाधान में गहराई से लगा रहा है। हाल ही के एक ऐतिहासिक अदालती फैसले ने पिता की संपत्ति के संबंध में कुछ नए निर्देश प्रदान किए हैं, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि एक पिता, बेटे की सहमति के बिना भी संपत्ति बेच सकता है। इस नए फैसले में कोर्ट ने कुछ महत्वपूर्ण परिस्थितियों पर प्रकाश डाला है।

निर्णय की विशेषताएँ

1. बिना पूर्व अनुमति के बेच सकते हैं

कोर्ट ने कहा है कि पिता बेटे की सहमति के बिना भी संपत्ति बेच सकता है, भले ही बेटे का संपत्ति में हिस्सा हो या नहीं। यह नया सिद्धांत विवादास्पद है, लेकिन कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि ऐसा करने पर पिता को कोई चुनौती नहीं मिलेगी, जब उसने कानूनी जरूरतों के लिए संपत्ति बेची हो।

2. संपत्ति बेचने की परिस्थितियाँ

न्यायालय ने कुछ ऐसी परिस्थितियाँ निर्धारित की हैं जिनमें पिता किसी से परामर्श किए बिना संपत्ति बेच सकता है। इनमें से कुछ मुख्य हैं:

पैतृक ऋण चुकाने के लिए: यदि परिवार का मुखिया ऋण चुकाने के लिए पैतृक संपत्ति बेच देता है, तो उसे कोई चुनौती नहीं होगी।

सरकारी कर्ज हो तो: अगर संपत्ति पर सरकारी कर्ज है तो भी पिता उसे बेच सकता है।

विवाह, समारोह या अंतिम संस्कार के लिए: संपत्ति को बेटे के विवाह, समारोह या अंतिम संस्कार के लिए बेचा जा सकता है।

3. कानूनी प्रावधान

कोर्ट ने हिंदू अधिनियम के अनुच्छेद 254 को महत्वपूर्ण पाया, जो पिता द्वारा संपत्ति की बिक्री का प्रावधान करता है। इसके अनुच्छेद 254 (2) में विवादित प्रश्नों का समाधान शामिल है, जो संपत्ति बेचने की प्रक्रिया निर्दिष्ट करता है।

4. पैतृक संपत्ति बेचने की अन्य परिस्थितियाँ

कोर्ट ने बताया है कि कई अन्य परिस्थितियां भी हो सकती हैं जिनमें पैतृक संपत्ति बेची जा सकती है, जैसे:

कर्ज चुकाने के लिए: पैतृक कर्ज चुकाने के लिए संपत्ति बेची जा सकती है।

परिवार के सदस्यों के भरण-पोषण के लिए: परिवार के सदस्यों के भरण-पोषण के लिए संपत्ति बेची जा सकती है।

मुकदमेबाजी खर्चों के लिए: चल रहे मुकदमेबाजी खर्चों के लिए संपत्ति भी बेची जा सकती है।

पैतृक संपत्ति खरीदने और बेचने की प्रक्रिया के नियमों को नए नजरिए से जानें

अदालत का यह नया फैसला पिता की संपत्ति बेचने की प्रक्रिया में नए दृष्टिकोण का उदाहरण देता है। साथ ही हिंदू कानून के अनुच्छेद 254 में विशेष प्रावधान को समझना भी जरूरी है.

ये नियम संपत्ति के विभिन्न क्षेत्रों में बिक्री की अनुमति देते हैं, लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है कि इन्हें उपयुक्तता और निष्पक्षता के साथ लागू किया जाए।

अदालत का यह नया फैसला पिता की संपत्ति पर पिछले सभी विवादों को सुलझाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह नया दृष्टिकोण न केवल परिवारों के बीच संपत्ति संबंधों को स्पष्ट करता है, बल्कि समाज में न्याय और समर्थन का एक नया पहलू भी प्रदान करता है।

हिंदी कानून में इस तरह के सुधार स्वागत योग्य हैं और यह साबित करते हैं कि समाज में सद्भाव बनाए रखने के लिए कानून समय के साथ बदलता रहता है।