होली से पहले FCI ने रोकी गेहूं की नीलामी, मंडियों में तेजी आएगी या मंदी? जानिए ताजा अपडेट

बीते दो दिनों में गेहूं के बाजार में जबरदस्त उछाल देखने को मिला है। दिल्ली मंडी में गेहूं की कीमतें 200 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़कर 3100 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई हैं। इसकी मुख्य वजह भारतीय खाद्य निगम (FCI) की संभावित खरीद रणनीति और सरकार द्वारा आगामी नीलामी बंद करने की चर्चा बताई जा रही है।
6 मार्च को जैसे ही बाजार में यह खबर आई कि FCI अब गेहूं की खरीद पर ध्यान देने वाला है और कोई नई टेंडर प्रक्रिया नहीं होगी, वैसे ही बाजार में तेजी देखी गई। इस कारण से व्यापारी और किसान अपने स्टॉक को होल्ड करने लगे हैं क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि कीमतें और बढ़ सकती हैं। इसी वजह से इस दौरान गेहूं के विक्रेता बिकवाली से पीछे हट गए और मिलर्स अपनी आवश्यकता के हिसाब से ही खरीद कर रहे हैं।
क्या यह तेजी बनी रहेगी या जल्द आएगी मंदी?
मौजूदा स्थिति को देखते हुए बाजार में मिश्रित रुझान देखने को मिल रहा है। कुछ विश्लेषकों (Analysts) का मानना है कि यह तेजी स्थायी नहीं होगी क्योंकि जैसे ही सरकारी खरीद (Procurement) की शुरुआत होगी, मंडियों में गेहूं की आवक बढ़ेगी और दामों पर दबाव पड़ेगा।
सरकारी खरीद की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आती जाएगी, वैसे-वैसे गेहूं का स्टॉक बाजार में बढ़ेगा और स्वाभाविक रूप से कीमतों में गिरावट देखी जा सकती है। दूसरी ओर, व्यापारी वर्ग इस उछाल से मुनाफा कमाने के लिए कुछ और समय तक होल्डिंग (Stock Holding) कर सकते हैं।
सरकारी खरीद पर असर
इस वक्त मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे गेहूं उत्पादक राज्यों में गेहूं की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से ऊपर चल रही हैं। इससे सरकार की खरीद प्रक्रिया (Procurement Process) प्रभावित हो सकती है क्योंकि किसान सरकारी एजेंसियों को बेचने के बजाय निजी व्यापारियों (Private Traders) को ऊंचे दामों पर अपना गेहूं बेचना पसंद करेंगे।
सरकार को उम्मीद है कि मध्य प्रदेश और राजस्थान में घोषित बोनस योजनाओं से सरकारी खरीद को बढ़ावा मिलेगा। इस साल सरकार ने 31 मिलियन टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा है, जबकि पिछले साल यह लक्ष्य 37.3 मिलियन टन था। हालांकि, 2023 में केवल 26.61 मिलियन टन गेहूं ही खरीदा जा सका था।
गेहूं की कीमतों को काबू में रखने के लिए सरकार के कदम
गेहूं की बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने इस साल साप्ताहिक ई-नीलामी (e-Auction) का सहारा लिया था। ई-नीलामी के जरिए, सरकार ने बाजार में गेहूं की उपलब्धता बढ़ाने की कोशिश की थी, जिससे दाम कुछ हद तक नियंत्रण में आ सके।
पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष गेहूं का भंडार (Stock) कम था, जिस कारण सरकार ज्यादा मात्रा में गेहूं नहीं बेच पाई। लेकिन नीलामी (Auction) के दौरान गेहूं की कीमतों में प्रति क्विंटल 170 रुपये तक की गिरावट देखी गई।
FCI ने गेहूं का औसत आरक्षित मूल्य (Average Reserve Price) 2,464 रुपये प्रति क्विंटल रखा था, लेकिन बाजार में यह 2,800 रुपये तक बिका। पहले दौर में औसत बिक्री मूल्य 2,885 रुपये था, जो बाद में घटकर 2,712 रुपये प्रति क्विंटल रह गया।
5 मार्च की अंतिम नीलामी में कीमतों में उतार-चढ़ाव
5 मार्च को हुई आखिरी ई-नीलामी में कुछ राज्यों में गेहूं के न्यूनतम बोली मूल्य में 10 से 150 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी देखी गई। इनमें प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, असम और हरियाणा शामिल हैं।
वहीं, तमिलनाडु, तेलंगाना और केरल में गेहूं के अधिकतम बोली मूल्य में 10 से 58 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
नीलामी की अधिकतम बोली इस प्रकार रही:
मध्य प्रदेश: 2,540 रुपये/क्विंटल
उत्तराखंड: 3,009 रुपये/क्विंटल
जम्मू-कश्मीर: 3,275 रुपये/क्विंटल
हरियाणा और पंजाब में मंडी टैक्स और अन्य करों के कारण वहां की आटा मिलें ज्यादातर राजस्थान से गेहूं खरीद रही हैं। हरियाणा में बीते एक हफ्ते में गेहूं की अधिकतम बोली 570 रुपये प्रति क्विंटल कम होकर 2,880 रुपये पहुंच गई है। पंजाब में भी 50 रुपये की गिरावट आई और बोली 2,850 रुपये प्रति क्विंटल पर रही।
खुले बाजार बिक्री योजना हुई समाप्त
भारतीय खाद्य निगम (FCI) ने खुले बाजार बिक्री योजना (Open Market Sale Scheme - OMSS) के तहत इस साल की गेहूं की नीलामी प्रक्रिया समाप्त कर दी है। सरकार ने इस शुक्रवार को होने वाली साप्ताहिक नीलामी के लिए कोई नया टेंडर जारी नहीं किया है।
क्या आगे बाजार में तेजी बनी रहेगी?
अब सवाल यह उठता है कि गेहूं का भाव और बढ़ेगा या गिरावट आएगी? चूंकि FCI ने नीलामी प्रक्रिया को रोक दिया है, इससे बाजार में अस्थायी रूप से भाव बढ़ने की संभावना बनी हुई है। फिलहाल दिल्ली मंडी में गेहूं के दाम 3050 से 3100 रुपये प्रति क्विंटल के बीच चल रहे हैं।
लेकिन जैसे ही सरकारी खरीद (Govt Procurement) शुरू होगी और मंडियों में नए सीजन की फसल की आवक (New Crop Arrival) बढ़ेगी, वैसे ही कीमतों पर दबाव बढ़ सकता है।