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आयकर विभाग की मनमानी पर अब लगेगी लगाम, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से टैक्सपेयर्स को मिली राहत

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम मामले में स्पष्ट किया है कि यदि तलाशी के दौरान आयकर विभाग के पास कोई ठोस सबूत नहीं मिलता है, तो वह करदाता की आय (Income) में वृद्धि नहीं कर सकता।

 
Income Tax Department

देश में टैक्सपेयर्स (Taxpayers) के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का हालिया फैसला बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। कोर्ट ने आयकर विभाग (Income Tax Department) की कार्रवाई पर एक ऐसा निर्णय सुनाया है जो करदाताओं को राहत देने के साथ-साथ विभाग की मनमानी पर भी लगाम लगाएगा। इस फैसले में आयकर एक्ट (Income Tax Act) की धारा 153ए (Section 153A) का विशेष रूप से जिक्र किया गया है, जिसके तहत तलाशी और जब्ती के दौरान करदाताओं की आय में केवल ठोस सबूत मिलने पर ही वृद्धि की जा सकती है।

करदाताओं को सुप्रीम कोर्ट से मिली बड़ी राहत

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम मामले में स्पष्ट किया है कि यदि तलाशी के दौरान आयकर विभाग के पास कोई ठोस सबूत नहीं मिलता है, तो वह करदाता की आय (Income) में वृद्धि नहीं कर सकता। इस फैसले ने आयकर विभाग की उस प्रक्रिया पर सवाल खड़ा किया है, जिसमें तलाशी के बिना किसी स्पष्ट आधार के टैक्स वसूली का दबाव बनाया जाता था।

आयकर विभाग के पास बचा यह विकल्प

हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से आयकर विभाग की कार्रवाई की प्रक्रिया पर नियंत्रण हो सकता है, लेकिन कोर्ट ने यह भी कहा है कि विभाग के पास विकल्प मौजूद है। यदि बाद में कोई पुख्ता सबूत सामने आते हैं, तो आयकर विभाग मामले को फिर से खोल सकता है। यह फैसला न केवल करदाताओं को राहत देगा, बल्कि आयकर विभाग को भी एक पारदर्शी और प्रमाण-आधारित प्रणाली अपनाने के लिए प्रेरित करेगा।

मामलों को दोबारा खोलने पर कोर्ट की गाइडलाइन्स

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि जिन मामलों में पहले से ही धारा 153ए के तहत असेसमेंट (Assessment) किया जा चुका है, उन्हें बिना नए ठोस सबूत के दोबारा नहीं खोला जा सकता। अगर तलाशी या जांच के दौरान नई और ठोस जानकारी मिलती है, तो री-असेसमेंट (Re-assessment) किया जा सकता है। इस फैसले से आयकर विभाग को अपनी जांच प्रणाली को और सुदृढ़ करने की जरूरत होगी।

हाई कोर्ट के फैसले को रखा बरकरार

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट (High Court) के फैसले को बरकरार रखते हुए इसे सही ठहराया है। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति सुधांशु धुलिया की बेंच ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि री-असेसमेंट की प्रक्रिया का करदाताओं पर बड़ा असर पड़ता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह फैसला टैक्सपेयर्स को राहत देने और आयकर विभाग की मनमानी को रोकने के लिए है।

क्या कहती है यह धारा?

आयकर एक्ट (Income Tax Act) की धारा 153ए तलाशी और जब्ती के दौरान करदाताओं की आय की जांच का आधार बनती है। इसके तहत यदि तलाशी में अघोषित आय (Undisclosed Income) का पता चलता है, तो उसे कर के दायरे में लाया जाता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई ठोस सबूत नहीं है, तो आयकर विभाग आय में वृद्धि नहीं कर सकता। इसके अलावा, धारा 147 और 148 के तहत री-असेसमेंट की प्रक्रिया को भी नए सबूत मिलने पर ही शुरू किया जा सकता है।

करदाताओं के लिए क्या है फायदा?

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से करदाताओं को बड़ा लाभ होगा। अब आयकर विभाग बिना ठोस आधार के टैक्सपेयर्स पर कोई अतिरिक्त दबाव नहीं बना पाएगा। इससे टैक्स प्रणाली में पारदर्शिता और विश्वास बढ़ेगा। इसके अलावा, करदाता अपने अधिकारों को लेकर अधिक जागरूक हो सकेंगे और किसी भी गलत कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का सहारा ले सकेंगे।

आयकर विभाग को क्या सबक मिला?

इस फैसले के बाद आयकर विभाग को अपनी कार्रवाई के तरीके में बदलाव करना होगा। बिना सबूत के तलाशी और जब्ती के मामलों पर रोक लगने से विभाग को और अधिक सटीकता और पारदर्शिता के साथ काम करना होगा। साथ ही, यह निर्णय आयकर विभाग और टैक्सपेयर्स के बीच बेहतर संतुलन स्थापित करेगा।